सीता कृत गौरी स्तुति | भवानी स्तुति

    पुष्पवाटिकामें जब श्रीराम एवं सीता एक दूसरेको प्रथम बार देखते है। तब दोनों पुरातन प्रीतिको चरितार्थ करते हुए एक दूसरेको चाहने लगते है। अपनी सखियों सहित गौरी पूजा करने आयी हुई सीता श्रीरामको पतिरूपमें प्राप्त करनेकी कामनासे जगज्जननी भवानीकी स्तुति करती है—

जय जय गिरिवरराज किशोरी। जय महेश मुखचंद चकोरी॥
जय गजवदन षडानन माता। जगत जननि दामिनि द्युति गाता॥

हे पर्वतराज हिमाचलकी पुत्री! आपकी जय हो, जय हो, हे महेशके मुखरूपी चंद्रकी चकोरी! आपकी जय हो, गणेश और कार्तिकेयकी माता! हे जगज्जननी! हे बिजलीकी कान्तिसे युक्त देहवाली! आपकी जय हो॥

नहिं तव आदि मध्य अवसाना। अमित प्रभाव वेद नहिं जाना॥
भव भव विभव पराभव कारिनि। विश्वविमोहनि स्ववश विहारिणि॥

आपका आदि, मध्य एवं अंत नहीं है। आपके अमित प्रभावको वेद नहीं जानते। आप विश्वको उत्पन्न, पालन व नष्ट करनेवाली हैं। विश्वविमोहिनी एवं स्वतंत्ररूपसे विहार करनेवाली हैं॥

पतिदेवता सुतीय महँ मातु प्रथम तव रेख।
महिमा अमित न सकहिं कहि सहस शारदा शेष॥

पतिको इष्टदेव मानने वाली श्रेष्ठ नारियोंमें हे माता! आपकी प्रथम गणना है। आपकी अपार महिमाको हजारों सरस्वती एवं शेष भी नहीं कह सकते॥

सेवत तोहि सुलभ फल चारी। वरदायिनी पुरारि पियारी॥
देवि पूजि पदकमल तुम्हारे। सुर नर मुनि सब होहिं सुखारे॥

हे वरदायिनि! पुरारिकी प्रिय पत्नी! आपकी सेवासे चारों फल सुलभ हो जाते हैं। देवि! आपके चरणकमलोंकी पूजा करके देवता, मनुष्य और मुनि सभी सुखी हो जाते हैं॥

मोर मनोरथ जानहु नीके। बसहु सदा उर पुर सबही के॥
कीन्हेउ प्रकट न कारण तेहीं। अस कहि चरण गहे वैदेहीं॥

मेरे मनोरथको आप भलीभाँति जानती हैं, क्योंकि आप सदा सबके हृदयरूपी पुरमें निवास करती हैं। इसी कारण मैंने उसे प्रकट नहीं किया। ऐसा कह जानकीने उनके चरण पकड़ लिए॥


    सीता की इस स्तुति को सुनकर भवानी प्रसन्न होती हैं और उनकी मूर्ति से माला खिसककर गिर जाती है। महादेवी सीता को आशीर्वाद देती हैं कि जिसमें तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है वही सांवला वर तुमको मिलेगा। 

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