प्रश्नः— क्या स्त्री को गायत्री मंत्र का जप करना चाहियेॽ
उत्तरः— स्त्री को गायत्री मंत्र का जप नहीं करना चाहिये। आजकल गायत्री मंत्र का जप वे स्त्रियाँ करती हैं‚ जिनके भीतर अभिमान है कि हम छोटे क्यों रहेंॽ अपना कल्याण चाहने वाली स्त्री गायत्री जप नहीं करेगी। जिसके भीतर अभिमान है वह पण्डित भी हो तो नरकों में जायगा। भगवन्नाम का जप गायत्री जप से कम नहीं है। भगवन्नाम जप में सभी का समान अधिकार है। जो यज्ञोपवीत में अधिकृत हो‚ जैसे ब्राह्मण‚ क्षत्रिय एवं वैश्य; और जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ भी हो‚ ऐसे व्यक्ति ही गायत्री जप कर सकते है। स्त्रियों एवं शूद्रों का यज्ञोपवीत संस्कार नहीं होता। अतः वे गायत्री जप नहीं कर सकते। पर जिसने यज्ञोपवीत धारण न किया हो‚ ऐसे ब्राह्मण को भी गायत्री जप का अधिकार नहीं है।
वैसे ऊपर ऊपर से देखने पर तो लगता है कि स्त्रियों व शूद्रों को इस अधिकार से वंचित क्यों रखा गया परन्तु गहराई में उतरने पर पता चलता है कि स्त्रियों व शूद्रों को गायत्री का अधिकार न देकर उन्हें आफत से छुड़ाया गया है। गायत्री जप में इतनी विधि है कि यदि कोई यज्ञोपवीतधारी व्यक्ति भी कोई चूक कर दे तो दोष का भागी बन जाता है। इससे तो अच्छा है कि सीधे सीधे भगवन्नाम का जप कर लिया जाय‚ इसमे कोई विधि नहीं है। किसी भी दशा में‚ किसी भी समय में चाहे किसी भी वर्ण या लिंग का व्यक्ति हो वह भगवान् के नाम को जप सकता है। अतः भगवान् का नाम गायत्री मंत्र से व्यापक सिद्ध हुआ। व्यापक वस्तु को अंगीकार करना अधिक समझदारी की बात है।
जैसे बाजार से हम कोई इलेक्ट्रोनिक आइटम खरीदते है तो उसके साथ एक पंपलेट भी होता है जिसमें उसके उपयोग की विधि बतायी जाती है। यदि उस हिसाब से प्रयोग न किया तो प्रयोक्ता को हानि हो सकती है। टूथपेस्ट पर लिखा होता है कि इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखा जाय तो अब यहाँ तात्पर्य यह थोड़ी निकाला जाएगा कि टूथपेस्ट बनाने वाली कंपनियाँ बच्चों से द्वेष रखती है या उन्हें अधिकार प्रदान नहीं करती है। बल्कि वे उन्हें बचाने का काम करती है। ठीक वैसे ही हमारे त्रिकालदर्शी समर्थ ऋषियों ने राग अथवा द्वेष से परे रहकर पहले से विचारकर मर्यादाएं (गाइडलाइन) निश्चित कर दी है। अब जो गाइडलाइन तोड़ेगा वह दण्ड का भागी होगा ही।
सनातन धर्म में फल प्राप्ति में किसी को भी वंचित नहीं किया गया है‚ केवल अधिकारानुसार तरीको अथवा विधियों में भेद किया गया है। जैसे कोई डाक्टर दवाई देता है तो वह उस दवाई को लेने की विधि और परहेज भी बताता है। अगर गलत तरीके से दवाई ली गयी तो लाभ की जगह हानि होगी। यहाँ यह सोचना कि यदि स्त्रियाँ व शूद्र गायत्री नहीं जपेंगे तो उससे होने वाला लाभ उन्हें कैसे प्राप्त होगा तो यह सोच कतई गलत है; क्योंकि लाभ नहीं होगा अपितु नुकसान होगा। जो लाभ या पुण्य यज्ञोपवीतधारी ब्राह्मण‚ क्षत्रिय एवं वैश्य को गायत्री जपने से होगा वही लाभ या पुण्य अपितु अधिक ही भगवन्नाम जपने से हो जायेगा।
स्वामी रामसुखदास से एक बार किसी ब्राह्मण ने कहा था कि जब मैं गायत्री का जप करता हूँ तो स्वभाव में एक तेजी आती है‚ शाप या वरदान देने की सामर्थ्य आती है और जब राम नाम का जप करता हूँ तो भीतर एक शीतलता प्रतीत होती है तो अपने लिये तो राम नाम का जप ही ठीक है। यदि फिर भी स्त्री गायत्री का जप करती है तो उसके स्वभाव में विकृति आना शुरू हो जाती है‚ क्योंकि उस मंत्र से उत्पन्न तेज को वह सहन नहीं कर पाती। गायत्री मंत्र की टेप घर में बजाना या माइक से गाना सर्वथा विधिविरुद्ध है‚ इससे बचना चाहिये। विधि का पालन अपनी क्षमतानुसार करें या न करें परंतु निषेध का पालन अवश्य करना चाहिये।
आजकल ऐसे संस्थान बड़ी संख्या में प्रचलित हो रहे है जो समानता के नाम पर स्त्रियों व अनधिकृत व्यक्तियों का यज्ञोपवीत करा रहे है। ये लोग स्वयं तो डूबेंगे ही अपने अनुयायियों का भी बंटाधार कराकर मानेंगे। अतः इन धर्म का चोला पहनी हुई अधर्म का पोषण करने वाली आधुनिक संस्थाओं से कल्याण चाहने वाले मनुष्यों को दूर रहना चाहिये।
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