क्या सती होना आत्महत्या हैॽ Is sati a suicide

 प्रश्नः— कोई स्त्री सती होती है तो उसे आत्महत्या का पाप क्यों नही लगताॽ

उत्तरः— कोई स्त्री सती होती है तो उसे आत्महत्या का पाप नहीं लगता; क्योंकि यह आत्महत्या है ही नहीं। सती होने वाली स्त्री अपनी आयु का नाश नहीं करती बल्कि त्याग करती है। सती होना कोई साधारण बात नहीं है। जिसके भीतर सत् आ जाता है‚ तभी वह सती होती है। वह आग के बिना भी जल जाती है और जलते समय उसको कष्ट भी नहीं होता। अपने-अपने अधिकारानुसार किस कर्म से किसी प्राणी को क्या दण्ड होगा या क्या पुण्य मिलेगा‚ इसका निर्धारण शास्त्र करते है‚ न कि हमारी अल्पबुदि्ध।

    वर्तमान समय की एक सत्य घटना है। हरदोई जिले में इकनोरा गाँव है। वहाँ एक लड़की अपने मामा के घर पर थी। उसका पति मर गया। उस लड़की को जब पति की मृत्यु का समचार मिला तो उसने मामा से कहा कि मेरे को जल्दी पति के पास पहुंँचा दो। मामा ने कहा कि कैसे पहुँचाऊँॽ शरीर तो अब जल गया होगा। उसने कहा कि मैं सती होऊँगीॽ मामा ने मना किया तो उसने अपनी अँगुली दीये पर रखी। वह अँगुली मोमबत्ती की तरह जलने लगी। वह बोली अगर आप मेरे को सती होने से रोकेंगे तो आपका सब घर जल जायगा। मामा डर गया। उस लड़की ने दीवार पर अपनी जलती हुई अँगुली को बुझाया और घर से बाहर निकलकर पीपल के नीचे खड़ी हो गयी। उसने लकड़ी माँगी तो किसी ने दी नहीं। उसने सूर्य से प्रार्थना की कि ये मेरे को लकड़ी नहीं देते हैं‚ आप ही कृपा करके मेरे को अग्नि दो। ऐसा कहते ही उसके शरीर में अपने-आप आग लग गयी और वह वहीं जल गयी। गाँव के लोगों ने यह सब अपनी आँखों से देखा।

    स्वामी करपात्री महाराज भी वहाँ गये थे और उन्होंने दीवार पर पड़ी वे काली लकीरें देखीं‚ जो जलती हुई अँगुली बुझाने से खिंच गयी थीं और पीपल के जले हुए पत्ते भी देखे। गीताप्रेस के कल्याण विभाग से भी एक आदमी वहाँ गया था और उसने इस घटना को सत्य पाया। उसने वहाँ के मुसलमानों से पूछा तो उन्होंने भी कहा कि यह सब घटना हमारे सामने घटी है। 


    प्राचीन कथाओं पर हम संशय कर ही लेते है इसलिये यह आज के जमाने का उदाहरण पहले रखा है। हमारे शास्त्रों में देवियों के सती होने के प्रमाण भरे पड़े है। जैसे महाभारत में महाराज पाण्डु के साथ उनकी दूसरी पत्नी माद्री सती हुई थी। महाराज पृथु की पत्नी अर्चि भी उनकी चिता के साथ सती हो गयीं थीं। जड़भरत जिनकी कथा प्रसिद्ध है‚ उनकी माता भी अपने पति के साथ सती हुई थीं। भगवान् श्रीकृष्ण की आठों पटरानियाँ भी सती हो गयी थीं। इसी कलियुग में रानी पदि्मनी के जौहर से तो सारा संसार परिचित है और हम सब उनका आदर करते ही है। सती नारी पर जब सत् चढता है‚ उस समय वह जो बात कह देती है‚ शाप या वरदान दे देती है‚ वह सत्य हाेता है।

    और सब छोड़िये‚ सती नाम भगवान् शिव की अर्धांगिनी का है। उन्होंने तो पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ में अपने पति का अपमान हुआ देखकर ही योगाग्नि से शरीर को भस्म कर लिया। तभी से सती शब्द में और प्रगाढता आयी है। यह सबसे बड़ा सतीत्व का उदाहरण है। महादेवी सती का स्मरण करने से नारियों को पातिव्रत्य एवं सतीत्व का बल प्राप्त होता है। 

एहि कर नाम सुमिरि संसारा। तिय चढिहैं पतिव्रत असिधारा।।

    सती का अर्थ केवल जल मरना ही नही समझ लेना चाहिये बल्कि जो नारी समर्पित भाव से अपने पति की सेवा करती है‚ अपने पति के अलावा अन्य पुरुष उसकी दृष्टि में है ही नही; वह सती कही जाती है। ऐसी समर्पित स्त्रियों में ही सत् का बल होता है‚ इस बल के साथ पति के साथ चिता में जल जाने पर भी उन्हें कष्ट नहीं होता। 

    लेकिन अब समय बहुत गिर गया है‚ इसलिये आजकल के लोग इन बातों को समझते नहीं। अगर किसान से कोई कह दे कि तुम हवाई जहाज बनाओ तो वह कैसे बना देगाॽ जिस विषय को वह जानता ही नहीं‚ उसको क्या वह बता देगाॽ इसी तरह जो संसार में रचे-पचे हैं‚ वे बेचारे धार्मिक और परमार्थिक बातों को क्या समझेंॽ अभी के समय में सतीत्व को सतीप्रथा का नाम दिया जाता है‚ हमारी जाति-व्यवस्था को जातिवाद कहकर बदनाम किया जाता है। यहाँ ध्यान रखने की बात है कि यदि कोई स्त्री सती नहीं होना चाहती तो पति की मृत्यु होने पर उसे सती होने के लिये विवश नहीं किया जाना चाहिये। यह कृत्य उसकी हत्या की श्रेणी में आता है। जैसे राजा दशरथ जब परलोक सिधारे तब उनकी तीनों पत्नियाँ सती नहीं हुई। भरत जी ने अनुनय विनय करके उनको सती होने से रोक लिया। 

    जो स्त्री पति के साथ सती हो जाती है‚ उसे अपने पति के लोक की प्राप्ति होती है या फिर वह स्त्री दुर्गति को प्राप्त अपने पति को सद्गति का अधिकारी बना देती है। लेकिन यह विधान स्त्रियों के लिये ही है‚ पुरुषों के लिये नहीं। यदि पुरुष अपनी पत्नी के मरने पर उसके साथ जल जाना या मर जाना चाहे तो यह उसकी आत्महत्या ही कही जायेगी; क्योंकि सबके लिये एक ही नियम नहीं होता। स्त्री का सती होना सुना जाता है लेकिन पुरुष का सता होना नहीं। अपने-अपने स्तर‚ अधिकार‚ जाति एवं लिंग के भेद के अनुसार विधान भी अलग-अलग होते है। जैसे कोई योगी चक्रभेदन की रीति से इच्छामृत्यु को प्राप्त होता है तो वह परमगति का भागी होता है न कि आत्महत्या का। वही कोई सामान्य मनुष्य आग लगाकर‚ जहर खाकर‚ फांसी लगाकर या कहीं से कूदकर अपनी जान दे दे तो वह आत्महत्या का दोषी होता है। उसे मुक्ति तो मिलती नही अपितु परलोक में दण्ड और भोगना पड़ता है। 

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