धार्मिक सिनेमा देखना चाहिये या नहींॽ Should we watch religious movies

 प्रश्नः— धार्मिक सिनेमा देखना चाहिये या नहींॽ

उत्तरः— धार्मिक सिनेमा या धार्मिक टीवी सीरियल देखने में हानि है; क्योंकि इनके निर्माताओं की दृष्टि पैसों की तरफ तथा साधारण लोगों रुचि की तरफ रहती है‚ सत्य की तरफ नहीं। वे शास्त्र में लिखी बातों को तत्त्व से नहीं समझते। शास्त्र में जो आया है और सिनेमा में जो दिखाते हैं— दोनाें में अंतर होने के कारण धार्मिक सिनेमा देखने से नास्तिकता आती है।

    दूसरी बात यह है कि धार्मिक सीरियल बनाने वाले लोग आज के माहौल व परिस्थितियों के अनुसार संवाद या स्क्रिप्ट का निर्धारत करते है। जैसे आजकल महिला अधिकार‚ नारी स्वतंत्रता की बातें कुछ ज्यादा ही हो रही हैं तो ऐसे सीरियलों में आपको इनके पात्र अति नारीवाद का पोषण करते नजर आ जायेंगे‚ जो कि इन्हें वास्तविक तथ्यों से काफी दूर ले जाता है। जबकि महिलाओं के सम्मान में पुराने जमाने में कोई कमी थी नहीं। सीता निर्वासन को ये ऐसे चित्रित करेंगे मानो स्त्रियों के साथ पहले अन्याय होता था। अगर मनोरंजन के लिये भी इस प्रकार का सीरियल देखे तो पहले शास्त्र को स्वयं पढना चहिये फिर सीरियल देखना चाहिये‚ तब इनकी ही पोल खुलने लगेगी। अच्छी तरह शास्त्र को समझनेवाला व्यक्ति कभी धार्मिक टीवी सीरियल या सिनेमा देखेगा ही नहीं। 

    जैसे रामानंद सागर ने रामायण टीवी सीरियल बनाया‚ जिससे लगभग सभी भारतीय परिचित है और उन्होंने देखा भी है‚ उस सीरियल से लोग काफी प्रभावित भी हुए हैं। लेकिन जैसा कि पहले कहा कि निर्मातागण धर्म के तत्त्व को नही समझते; इसका नमूना यह है कि ये ही रामानंद सागर साईं बाबा का सीरियल भी बना डालते है। अब जिस जनमानस की रुचि पहले राम या कृष्ण जैसे शास्त्रीय देवों में थी उनकी रुचि हटकर या बंटकर साईं बाबा की ओर चली गयी; जो कि कतई शास्त्रीय नहीं है। यहाँ तो लोग इसी में भ्रमित हो रहे है कि राम को पूजे‚ कृष्ण को पूजे‚ शिव को पूजे अथवा दुर्गा को पूजे‚ अब बीच में साई बाबा और टपक पड़े।

    कलर्स टीवी पर सन् 2008 में जय श्री कृष्णा नाम से एक सीरियल आया था‚ जिसमें एक चार-पांच साल की लड़की ने श्रीकृष्ण का किरदार निभाया था‚ लेकिन टीआरपी के चलते इसके निर्माताओं ने बहुत समय तक श्रीकृष्ण को बड़ा ही नहीं किया। इसी से कालिया नाग का दमन भी करा लिया‚ इसी से रास रचवा ली और गोवर्धन भी उठवा लिया। जबकि तीनों लीलाओं के समय श्रीकृष्ण की आयु भिन्न-भिन्न थी। कहानी का क्या सत्यानाश किया होगा‚ पता नहीं।

    इसे चाहे कलियुग का प्रभाव कहिये या हिंदूओं की कमी कह दीजिये‚ हम हिन्दूओं में धर्मनिष्ठा का काफी अभाव है। इसी का परिणाम है कि हम ही से जैन निकल गये‚ बौद्ध निकल गये‚ मुस्लिम निकल गये‚ सिक्ख निकल गये‚ ईसाई निकल गये‚ अंबेडकरवादी निकल गये‚ आर्यसमाजी निकल गये। टीवी सीरियल्स इसमें अच्छी खासी भूमिका निभा रहे है। बिना शास्त्रों का अध्ययन किये कोई धार्मिक सीरियल देखता है तो वह उसमें दर्शाए गये चरित्र के प्रति वैसी और उतनी ही धारणा बना लेता है‚ वह धारणा वास्तविक तथ्यों से इतर होती है। इन सीरियल निर्माताओं का ध्येय धर्म नहीं धन होता है‚ अतः धर्मप्राण व्यक्तियों को इनसे बचना चाहिये। आधा-एक घंटा धार्मिक सीरियल देखने के बजाय लोगों को शास्त्रों का अध्ययन कर लेना चाहिये ताकि यथार्थ का बोध हो सके और भ्रम से भी बचा जा सके‚ समय तो अच्छा व्यतीत होगा ही। 

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