दुर्गा सप्तश्लोकी | Durga Saptshloki

।।दुर्गा सप्तश्लोकी।।


ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति॥1॥

वे भगवती महामाया देवी ज्ञानियोंके भी चित्त को बलपूर्वक खींचकर मोह में डाल देती हैं।

दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः
स्वस्थैः स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्र्‌यदुःखभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता॥2॥

दुर्गे! आप पर सब प्राणियों का भय हर लेती हैं और स्वस्थ चित्त से चिंतन करने पर कल्याणमयी बुद्धि प्रदान करती हैं। दुःख, दरिद्रता और भय हरने वाली देवि! आपके सिवाय इस ब्रह्माण्ड में दूसरा कौन है, जिसका चित्त सबका उपकार करने के लिए सदा ही दयार्द्र रहता हो।

सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥3॥

हे नारायणिǃ शिवेǃ तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगलमयी कल्याणदायिनी हो। हे गौरिǃ सब पुरुषार्थों को सिद्ध करने वाली, शरणागतवत्सला, तीन नेत्रोंवाली तुम्हें नमस्कार है

शरणागतदीनार्तपरित्राणपरायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोऽस्तुते ॥4॥

शरण में आये हुए दिनों एवं पीड़ितों की रक्षा में संलग्न रहने वाली तथा सबकी पीड़ा दूर करने वाली नारायणी देवि! तुम्हें नमस्कार है।

सर्वस्वरूपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते।
भयेभ्यस्त्राहि नो देवि दुर्गे देवि नमोऽस्तुते॥5॥

सर्वस्वरूपा, सर्वेश्वरी तथा सब प्रकार की शक्तियों से सम्पन्न दिव्यरूपा दुर्गे देवि! सब भयों से हमारी रक्षा करो; तुम्हें नमस्कार है।

रोगानशोषानपहंसि तुष्टा 
रूष्टा तु कामान्‌ सकलानभीष्टान्‌।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्माश्रयतां प्रयान्ति॥6॥

हे देवि! आप प्रसन्न होने पर सब मनुष्य के सब रोगों को नष्ट कर देती हो और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हो। जो लोग आपकी शरण में जा चुके हैं, उन पर कोई विपत्ति तो आती ही नहीं। आपकी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं।

सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया कार्यमस्यद्वैरिविनाशनम्‌॥7॥

हे सर्वेश्वरी! तुम तीनों लोकों की समस्त बाधाओं को शांत करो और हमारे शत्रुओं का नाश करती रहो।




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