प्रारब्ध Vs उद्योग | उद्योग क्यों करेंॽ

प्रश्नः— जब धन प्रारब्धके अनुसार ही मिलेगा तो फिर उद्योग क्यों करेॽ


उत्तरः— सामान्य भाषा में यह प्रश्न इस प्रकार भी पूछा जा सकता है कि जब सब कुछ पहले से ही तय है तो मेहनत क्यों करेॽ 

उद्योग करना हमारा कर्तव्य है—ऐसा मानकर करना चाहिये। मनुष्यको अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये। भगवान् की आज्ञा भी है — ʺकर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचनʺ 

    कर्तव्य कर्म करनेमें ही तेरा अधिकार है‚ फलोंमें कभी नहीं। अगर मनुष्य कर्तव्य कर्म नहीं करेगा तो उसको दण्ड होगा। कर्तव्य कर्म करनेसे तत्काल शान्ति मिलती है और न करनेसे तत्काल अशान्ति। प्रारब्ध से मिलनेवाली चीज मिलेगी ही‚ लेकिन ऐसा विचारकर कर्तव्यका त्याग नहीं किया जा सकता। प्रारब्धका उद्देश्य चिन्ता मिटाने में है‚ न कि कर्तव्य कर्म छोडने को प्रेरित करने में। 

मनुष्य को करनेमें सावधान और होनेमें प्रसन्न रहना चाहिये। तभी वह समताकी प्राप्ति कर सकता है। 

सुखदुःखे समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैवं पापमवाप्स्यसि।।

भावार्थ यह है कि मनुष्य को सुख-दुःख‚ लाभ-हानि‚ जय-पराजयको समान देखते हुए कर्तव्य कर्म में जुट जाना चाहिये। ऐसा करने से वह किसी अनिष्ट को प्राप्त नहीं हो सकता। मनुष्य को यदि किसी कर्मका फल वर्तमानमें मिलता हुआ नहीं दिखता तो उसे पुराना प्रारब्ध जानना चाहिये। साथ ही यह भी समझ लेना चाहिये कि अभी का किया गया कर्म समयानुसार भविष्य में अवश्य फलीभूत होगा। 

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