भीष्म का युधिष्ठिर को उपदेश | भीष्म-युधिष्ठिर संवाद

    महाभारत युद्ध में महाराज युधिष्ठिर को अपने स्वजनों के वध से बड़ी चिन्ता हुई। व्यासादि महर्षियों एवं स्वयं भगवान् श्रीकृष्ण ने भी उन्हें समझाने का बहुत प्रयास किया लेकिन उनका शोक न मिटा। फिर सब धर्मों का ज्ञान प्राप्त करने एवं अपना शोक दूर करने के लिये उन्होंने श्रीकृष्ण व अपने भाईयों के साथ कुरुक्षेत्र की यात्रा की‚ जहां भीष्म शरशय्या पर पड़े हुए थे। युधिष्ठिर बडे़ विनय के साथ भीष्म के पास बैठ गये और इस प्रकार भीष्म-युधिष्ठिर संवाद आंरभ होता है—

    जिस प्रकार बादल वायु के वश में रहते हैं‚ वैसे ही लोकपालों के सहित सारा संसार काल भगवान् के अधीन है। मैं समझता हूं कि तुम लोगों के जीवन में ये जो अप्रिय घटनाएं घटित हुई हैं‚ वे सब उन्हीं की लीला हैं। जहां साक्षात् धर्मपुत्र युधिष्ठिर हों‚ गदाधारी भीमसेन और धनुर्धारी अर्जुन रक्षक हो‚ गाण्डीव धनुष हो और स्वयं श्रीकृष्ण सुहृद् हों— भला‚ वहां भी क्या विपत्ति की संभावना हैॽ 

    ये कालरूप् श्रीकृष्ण कब क्या करना चाहते हैं‚ इसको कोई नही जानता। ज्ञानीजन भी इसे जानने की इच्छा करके मोहित हो जाते है। हे युधिष्ठिरǃ संसार की सब घटनाएं ईश्वरेच्छा के अधीन है। उसी का अनुसरण करके तुम अनाथ प्रजा का पालन करो। ये श्रीकृष्ण साक्षात् भगवान् हैं। ये सबके आदिकारण और परम पुरुष नारायण है। अपनी माया से लोगों को मोहित करते हुए ये यदुवंशियों में छिपकर लीला कर रहे हैं। इनके अत्यन्त गूढ रहस्मय प्रभाव को भगवान् शिव‚ देवर्षि नारद और स्वयं भगवान् कपिल ही जानते है।

    जिन्हें तुम अपना ममेरा भाई‚ प्रिय मित्र और सबसे बड़ा हितू मानते हो तथा जिन्हें तुमने प्रेमवश अपना मंत्री‚ दूत और सारथि तक बना लिया‚ वे स्वयं परमात्मा है। इन सर्वात्मा‚ समदर्शी‚ अद्वितीय‚ अहंकाररहित और निष्पाप परमात्मा में उन छोटे-बड़े कार्यों के कारण कभी किसी प्रकार की विषमता नहीं होती। भगवत्परायण योगी पुरुष भक्तिभाव से इनमें अपना मन लगाकर और वाणी से इनके नाम का कीर्तन करते हुए शरीर का त्याग करते हैं और कामनाओं से तथा कर्म के बंधन से छूट जाते है।

    इस प्रकार भीष्म ने पहले तो होनहार का कथन किया और बाद में श्रीकृष्ण की महिमा कही। यद्यपि विस्तृत उपदेश तो महाभारत ग्रंथ में अनुशासन पर्व एवं शांतिपर्व में सन्निहित है; जो दानधर्म‚ राजधर्म‚ मोक्षधर्म‚ स्त्रीधर्म‚ निवृत्ति-प्रवृत्तिरूप धर्म और वर्णाश्रम धर्म के रूप में विस्तृत है। यहां तो अत्यन्त सारभूत उपदेश बताया गया है। इसके पश्चात् भीष्म ने वहाँ उपस्थित भगवान् श्रीकृष्ण की स्तुति की‚ जो भीष्म स्तुति के नाम से प्रसिद्ध है और अपने आपको आत्मस्वरूप श्रीकृष्ण में लीन कर लिया। 

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